...

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सांझ को फिर निमंत्रण मिला है ....
#सांझ

सांझ को फ़िर निमंत्रण मिला है
दोपहर कल के लिए निकला है
अब उठो तुम है इंतजार किसका
बे-वज़ह क्यूँ दिल तेरा दहला है
बिस्तर पे नींद आए भी तो कैसे
धरा पर है ही नहीं लोरी सुनाने वाली.....!!
अब तो ये सांझ फिर नहीं आने वाली.....!!

सांझ ढलते ही निशा का आगमन हो रहा है
अपने अपने बसेरों की तरफ गमन हो रहा है
पुरजोर कोशिश में हैं, कि अंधेरा छंट जाए
प्रकाश पुंजों से ही अब आचमन हो रहा है
मगर इतना हमेशा ही ख़्याल तुम रखना की
ये रौशनी तुम्हारे साथ कभी नहीं जाने वाली....!!
अब तो है सांझ फिर नहीं आने वाली.....!!

अंधेरा जैसे जैसे यहाँ पर गहरा रहा है
फिर तू क्यूँ इतना ज्यादा घबरा रहा है
गगन को किसने यहाँ मुठ्ठी में किया है
सिर्फ़ परिंदों पर ही यहाँ पहरा रहा है
खुदाई का ख़िदमतगार रह और सब्र कर
कभी तो आएगी मौज किनारे लगाने वाली...!!
अब तो है सांझ फिर नहीं आने वाली.....!!


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© कुन्दन प्रीत