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प्रेरणा
चाहे प्रबंध हो कठिनाइयों का।
या उपलब्ध सारा जहान हो ।
व्योमिल नयनों से छीनी कटार हो ।
चाहे तार तार , कतार हो ।
या नभ को परिभाषित करने ।
स्वां धरा का आगाज हो ।
या बदल जाए भूमि का कण कण ।
या वेशभूषा का विस्तार हो ।
सागर सा रोष हो ।
या चीटी सा अल्प आकार हो ।
अदभुत हो हर दृश्य या ।
या अनुपम गाथा का गुणगान हो ।
चाहे बदल जाए परिपाटी व्यक्तितत्व की।
या अमलता का अघोष हो ।
चाहे भास्कर की किरण सा तेज ।
या अमावस को काली शाम हो।
चाहे शशि सी शीतलता ।
या दिनकर सी उगलती आग हो ।
किंतु है साहसी मानव तू रुकना , ना थमना न ,थकना न ।
निरंतरता ही तेरा अंतिम पड़ाव हो।
© Sarthak writings