विलुप्त हो रही ऐतिहासिक प्रथा
#HistoricalEchoes
ओस से सनी,
तृणों पर पड़ते हैं जब पांव,
तो लगता है,
अभी भी कहीं बचा है,
वो ऐतिहासिक शहर,
जिसमें कोई ईट नहीं है,
जिसपे पुताई भी नहीं है,
ना ही कोई कमरा है,
और ना ही,
कोई दरवाजा,
लेकिन झुग्गी...
ओस से सनी,
तृणों पर पड़ते हैं जब पांव,
तो लगता है,
अभी भी कहीं बचा है,
वो ऐतिहासिक शहर,
जिसमें कोई ईट नहीं है,
जिसपे पुताई भी नहीं है,
ना ही कोई कमरा है,
और ना ही,
कोई दरवाजा,
लेकिन झुग्गी...