खुशबू किताबों की
मन जो था इक दर्पण था
कितना प्यार बचपन था
इन अंखियों में उड़ान नई थी
सीने पर भी पहचान नई थी
स्कूल जाने से पहले जो दो आंसू ढलके थे
वहां जाते पता चला दुख तो ये दो पल के थे
झलका रही थी रंगत भी उजले उजले काबों की
बस्तों में जो भरी हुई थी नई खुशबू किताबों की
बीत गया ये बचपन अपनी ही खुमारी में
उलझेथेअब भी हम वो दोस्ती में यारी में
पलक झपकते...
कितना प्यार बचपन था
इन अंखियों में उड़ान नई थी
सीने पर भी पहचान नई थी
स्कूल जाने से पहले जो दो आंसू ढलके थे
वहां जाते पता चला दुख तो ये दो पल के थे
झलका रही थी रंगत भी उजले उजले काबों की
बस्तों में जो भरी हुई थी नई खुशबू किताबों की
बीत गया ये बचपन अपनी ही खुमारी में
उलझेथेअब भी हम वो दोस्ती में यारी में
पलक झपकते...