...

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पग रुके ही नहीं....
मंज़िल दूर हो भले ही,
रास्ते में कांटे भी सही,
मगर पग रुके ही नहीं।
आलोचनाओं की बौछारों में
मन की घायल छतरी को
साहस ने दृढ़ता से सिए।
विचलित भी न हुआ मन
क्षण भर के लिए।
धारण किए फिर धैर्य वही,
पग रुके ही...