मेरी कहानी मेरी ज़ुबानी
कभी-कभी मैं सोचता हूँ,
क्या मैं वह पात्र हूँ,
जिसे समय ने रचा,
या वह समय हूँ,
जिसे एक पात्र ने जिया?
इतिहास की गलियों में घूमता हूँ,
जैसे पुराने मंदिर की टूटी मूर्तियाँ,
कभी अर्ध-खिलखिलाते,
कभी गंभीर,
लेकिन सब में कोई न कोई रहस्य गहरा।
मेरी उंगलियों में समय के धागे हैं,
जिन्हें मैं न जाने कितनी बार सुलझा चुका...
क्या मैं वह पात्र हूँ,
जिसे समय ने रचा,
या वह समय हूँ,
जिसे एक पात्र ने जिया?
इतिहास की गलियों में घूमता हूँ,
जैसे पुराने मंदिर की टूटी मूर्तियाँ,
कभी अर्ध-खिलखिलाते,
कभी गंभीर,
लेकिन सब में कोई न कोई रहस्य गहरा।
मेरी उंगलियों में समय के धागे हैं,
जिन्हें मैं न जाने कितनी बार सुलझा चुका...