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हाँ मर्द को भी दर्द होता है .....💔
ना समझो पत्थर का टुकड़ा
उसके सीने में भी दिल होता है
आंखें बेशक ना हों नम
पर अंतर मन रोता है
हाँ मर्द को भी दर्द होता है
जब अपना कोई ठुकराता है
निरअपराध इल्जाम लगाता है
तब घायल हुए जज्बातों को
वो भीतर ही कहीं दफनाता है
आँखें बेशक ना हों नम
पर अंतर मन रोता है
हाँ मर्द को भी दर्द होता है
जब हो आर्थिक लाचारी
घर को घेरे हो बीमारी
जब दांव लगी हो ख़ुद्दारी
तब बेबस हो वो तड़पता है
आंखें बेशक ना हों नम
पर अंतर मन रोता है
हाँ मर्द को भी दर्द होता है
ये सख्त हृदय सा दिखने वाला
हर मुुश्किल से लड़ जाता है
पर " प्यार " करे गर अय्यारी (छल)
तो टुकड़ों में बट जाता है
फिर सोचो कैसे उन बिखरे टुकड़ों से
आशियां कोई बनाता है
आंखे बेशक ना हों नम
पर अंतर मन रोता है
हाँ मर्द को भी दर्द होता है
हम क्या समझेंगे उसकी पीढ़ा को
हमने तो अश्कों में दर्द बहाया है
कभी अवसर मिले झांकना
उसकी आंखों में
जो अपने ही हाथों से
अपनी मां को दफना कर आया है
पर विडंबना तो देखो उसकी
किस क़दर वो खुद से लड़ता है
ये दुनिया निर्बल ना समझ बैठे
वो ऐसा ख़ुद को गढ़ता है
पर बाहर जैसा दिखता है
अन्दर से ना वैसा होता है
बोलो कैसे कह दूं मैं
कि मर्द को दर्द नहीं होता है
जब तीन लोक का स्वामी ख़ुद
पत्नी विरह में फूट फूट कर रोता है
हाँ मर्द को भी दर्द होता है
🙏🙏
© Rekha pal
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