...

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सफर-ए-हयात
यार भी राह की दीवार समझते हैं मुझे,
मैं समझता था मेरे यार समझते हैं मुझे,

जड़ उखड़ने से झुकाव है मेरी शाखों में
दूर से लोग समर बार समझते हैं मुझे

क्या खबर कल यहीं ताबूत मेरा बन जाये
आज जिस तख़्त का हक़दार समझते हैं मुझे

नेक लोगो में मुझे नेक गिना जाता है
और गुनाहगार ~ गुनाहगार समझते हैं मुझे,

मैं तो खुद बिकने को बाज़ार में आया हूं
और दुकानदार ख़रीदार समझते हैं मुझे,

मैं बदलते हुए हालात में ढल जाता हूं
देखने वाले अदाकार समझते हैं मुझे,

मैं तो यूँ चुप हूँ कि अंदर से बहुत खाली हूँ
और ये लोग पुर इसरार समझते हैं मुझे

जुर्म ये है कि इन अंधों में हूँ आँखों वाला,
और सज़ा ये है कि सरदार समझते हैं मुझे।।