(अंतर्मन की आवाज)
देखो बाहर,
क्या रखा है इस अंधरे में
क्या देखूँ मैं तो तम हूँ इसी मैं रंगी हुई एक कहानी हूँ
मेरे हृदय पर ये मन की नदी उदास-सी बहती है
कितना भी क्यूँ ना ख़ुद को समझाऊँ मैं बदलती नही ।
देखो बाहर आओ ....
ये सूरज का तेज़, ये किरणे ,ये ठंडी शीतल नदी
ये खुला आसमाँ तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है
आओ ना....
एक बार ...फ़िर जा ही ना सकोगी तम तक
देखो ना !
नही देखना मुझे क्या देखूँ जब ख़्वाब ही नही बचे
क्यों आऊँ जब वक़्त ही नही बचा
जब मैं मुझमे ही नही रहती तो क्यूँ !
ये सूरज का तेज़ ना झेल...