...

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जिस्म रूह दिल
जिस्म की चालाकी देखो
रूह को दिल का झांसा देकर
इश्क़ का फ़रेब रचता है
वहीं दूजा जिस्म भी यूँही
रूह की आड़ में छिपकर
दिल दाँव पे रखता है

ये दिल भी नादां बच्चों जैसे
खुद को तन का भाग समझकर
भाग्यों को मिलवाते हैं
किसी अनामिका के आने से
धड़कन के तार को झंकृत कर
इक-दूजे में बस जाते हैं

इस जिस्म का कोई चरित्र नहीं
इन्द्रियों का सुख भोग करके
किसी और पे जा टिकता...