...

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सोचना भी
सोचना भी गवारा हो गया है मेरा,
उनसे बात करने के सिलसिले मैं
कुछ भी जताते नही हैं,
चाहे कितना ही क्यों ना याद करले हम उन्हे
ये क्या कश्मकश में हैं की न बात कर सकते है ना कुछ और काम कर सकते हैं......
अंदाज़ा नही हैं उन्हें कोई भी बातों का,
बस ऐसे लगता जैसे ये भी कोई लीला है उनकी,
अपनी ज़ुबान से तुम्हे ना कुछ कहेंगे की पसंद या याद करते है तुम्हे,
तुम सिर्फ मेरी नज़रों से समझ जाना।
ये तो सिर्फ दिल की बात इन अक्षरों में समेट के कहने की जुर्रत की हैं तुम्हे
नाम ना पूछो कोन है इस कवि को,
की कोन है वो,
क्योंकि वो खुद उससे मिलने के आस में है।
- Feel through words

© Feel_through_words