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Krishna Vaani
मुझसे ही सबको जानो, मुझे ही सब कुछ मानो,
मैं हीइस सृष्टि का रचनाकार ,और मुझे ही तुम महाकाल मानो,
मैं ही नटखट नंदकिशोर ,और मुझे ही पुरुषोत्तम श्रीराम मानो,
मैं ही सभी इंद्रियों में श्रेष्ठ मन ,और मुझे ही सभी प्राणियों में चेतना(आत्मा) जानो,
चारों वेदों में श्रेष्ठ सामवेद भी मैं ,और मुझे ही तुम देवराज इंद्र मानो,
मैं ही मोक्षदायिनी गंगा, और मुझे ही तुम महासागर जानो,
मैं ही परशुराम का परशा,और मुझे ही रघुनंदन का बाण मानो,
मुझसे जन्म लेती प्राणवायु ,और मुझे ही अग्नि का ताप मानो,
मैं क्षत्रियों का साहस हूं,और ब्राह्मणों का ब्रह्म ज्ञान,

सब का नाश करने वाली मृत्यु भी मैं हूं ,और आगे होने वाली उत्पत्ति का कारण भी मुझे ही मानो,
मैं ही पतित पुरातन आदि पुरुष, सत्य सनातन धर्म ही मेरा रूप,
मैं जगत का पालनहार, में ही सर्वव्यापी एक आधार
में है शिव, में ही ब्रह्मा ,में ही सूर्य ,में ही चंद्र यह बात तुम आज जान लो ,
मैं ही बैकुण्ठाधिपतिविष्णु ,मेरादिव्य रूप को तुम जान लो।
-गौरांग




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