...

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रुख हवा का
आज हवा ने फिर रुख मोड़ा है,
कुछ भूली बिसरी यादों का दरवाजा खोला है,
एक हल्के से झोंके ने कुछ सपनों को तोड़ा है,
आज हवा ने फिर रुख मोड़ा है।

लौटा लाई है ये हमें फिर उस दौर में,
जब दो करीबी अंजान हुआ करते थे,
होंठों पर चादर चुप्पी की ओढ़े,
आँखों से बातें किया करते थे।
हाँ! वो पल जिसे बीतने में जमाने लगा करते थे,
और अचानक उसे सामने देख
पलकों से मोती बहा करते थे।
अब उस दिल में अहसास इश्क़ का थोड़ा है,
आज हवा ने फिर रुख मोड़ा है।

अंजान वो शख्स, अंजान उसकी यादें हैं,
कुछ बिखरी कसमें, कुछ टूटे वादे हैं,
समेटे रखा था जिसे , बाहों के घेरे में,
किनारे किया है उसे, वक़्त के फेरे ने,
आज उस शख्श को भी शायद किसी ने छोड़ा है,
हाँ!
इस बार हवा ने फिर रुख मोड़ा है।


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