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#दूर
#दूर
दूर फिरंगी बन कर घूम रहा कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई,
दूर कहीं आवरा दिल घूमता है अनन्त गगन में
जमीं पे विरह के बादल अश्रु बहाते ।
विशाल नदी की धारा में खुद को विलीन कर
जीवन जीने का जश्न मनाते ।
दूर फिरंगी बन कर घूम रहा कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई,
दूर कहीं आवरा दिल घूमता है अनन्त गगन में
जमीं पे विरह के बादल अश्रु बहाते ।
विशाल नदी की धारा में खुद को विलीन कर
जीवन जीने का जश्न मनाते ।
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