ग़ज़ल 7 : कितने बदनसीब हैं हम
कितने बदनसीब हैं हम
बिगड़ा हुआ नसीब हैं हम
मिलकर हंस न पाओगे
खुशियों के रकीब हैं हम
रात ने यकीं दिलाया के
मौत के बहुत क़रीब हैं हम
जिसकी कलम श्रापित है
हां वही वाले अदीब हैं हम
मेरे छूते ही मर जाओगे
बहुत बुरे तबीब हैं हम
रिश्ते संभलते नहीं हमसे
अब ख़ुद के हबीब हैं हम
© Pooja Gaur
बिगड़ा हुआ नसीब हैं हम
मिलकर हंस न पाओगे
खुशियों के रकीब हैं हम
रात ने यकीं दिलाया के
मौत के बहुत क़रीब हैं हम
जिसकी कलम श्रापित है
हां वही वाले अदीब हैं हम
मेरे छूते ही मर जाओगे
बहुत बुरे तबीब हैं हम
रिश्ते संभलते नहीं हमसे
अब ख़ुद के हबीब हैं हम
© Pooja Gaur