...

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कोरोना...


कैसी मुश्किल घड़ी ये आई है,
जिसने हर तरफ हाहाकार मचाई है,
ना गुंहार सुनने वाला आसमान है,
ना पुकार लगाने को बच रहा इंसान है,
जाने कहाँ से शुरू हुआ कहाँ तक जाएगा,
जाने किसके हिस्से का पाप कौन निभाएगा,
शुन्य सा हृदय है सबका,
हर मन में एक नया सवाल है,
कोई कहता इंसान नहीं अपने कब्ज़े में,
इसलिए बिखरा हुआ संसार है,
कोई कहता कुदरत भी थक गई सहते सहते,
उसके क्रोध का ये परिणाम है,
होगई दुनिया ख़ाली जिन अपनों को खो के,
ना लौटेंगे कभी वापस, क्या होगा अब रो के,
फ़िर भी आधी दुनिया...