...

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कल्पना
कल्पना एक आकाश है
जहा पंछी बन उड़ जाता हूं मै
कल्पना एक बरसात है
जहा मोर बन झूम - गाता हूं मै

कल्पना एक सोपान है
जिससे हर दीवार लांघ जाता हूं मै
कल्पना एक दर्पण है
जिसे देख - देख शर्माता हूं मै

कल्पना एक तुरंग है
जिसपे बैठ दूर चला जाता हूं मै
कल्पना एक एहसास है
जिसे महसूस कर पता हूं मै

कल्पना एक तलवार है
जिससे हर बाधा से लड़ जाता हूं मै
कल्पना एक हार है
जिसको पा कर भी मुस्काता हूं मै

कल्पना एक योग है
जिससे श्रृष्टि से मिल जाता हूं मै
कल्पना स्वयं परिभाषा है
जिसको परिभाषित ना कर पता हूं मै

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उम्मीद करता हूं आपको ये कविता पसंद आया होगा।

कृपया अपना मत जरुर दे

धन्यवाद

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