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ज़िंदगी
कुछ अटपटी सी है ज़िंदगी,
जग मगते सितारों के बीच,
ये चांद अपना सा लगता है।
कुछ मीठी सी ये ज़िन्दगी,
बिन बोली भाषा के बीच,
सब समझ जाना अपना सा लगता है।
कुछ मुस्कुराती, हस खेल जाती ये ज़िन्दगी,
दोस्तों के शोर गुल के बीच,
कुछ झेड खानी अपना सा लगता है।
बड़ी रंगीली ये ज़िन्दगी
© SUPARNA S GHOSH
जग मगते सितारों के बीच,
ये चांद अपना सा लगता है।
कुछ मीठी सी ये ज़िन्दगी,
बिन बोली भाषा के बीच,
सब समझ जाना अपना सा लगता है।
कुछ मुस्कुराती, हस खेल जाती ये ज़िन्दगी,
दोस्तों के शोर गुल के बीच,
कुछ झेड खानी अपना सा लगता है।
बड़ी रंगीली ये ज़िन्दगी
© SUPARNA S GHOSH
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