...

20 views

घूंघट 👰
है कौन घूंघट, सर से फिसला जा रहा,
घूंघट अंध प्रथाओं का,
या दहेज का कारोबार किया जा रहा।

है कैसा घूंघट, जो गिरा जा रहा,
उछाल इज़्ज़त लक्ष्मी की घर की,
कौन घूंघट करिने से खींचा जा रहा।

किसका घूंघट, घट घट घटता चला जा रहा,
कभी नज़रों से, कभी जिस्मों पर,
हाथ कैसे घिनौने ढंग से फेरा जा रहा।

घूंघट के भीतर, कारोबार कैसा करा जा रहा,
बेच चुके बहन और बेटियां,
अब देश पर काम किया जा रहा।

लहराते घूंघट में किस सीता का हरण किया जा रहा,
लूटी पड़ी आन, बान, शान सारी,
और क्यों अपनी साख बचा रहा।

इस घूंघट के देहलीज को, आज हर रावण पार किया जा रहा,
लंका जलाने को अब,
रामचंद्र जी का इंतजार किया जा रहा।

कैसा, किसका, कौन सा घूंघट है,
दुहाई अपनों की, इज़्ज़त गैरों की लूटा रहा,
फिर भी समाज पहनावे को गलत बता रहा..!!

अचंभा नहीं इस बात का मुझे, समाज कहां बादल पा रहा,
अरे जाओ ले जाओ इज़्ज़त का टोकरा अपना,
देखो जनाज़ा छोटी सी बच्ची का आ रहा।

क्या कहेंगे अब दुनिया वाले, दिल महसूस नहीं अब के पा रहा,
सर से पांव तक लदे कपड़ों में भी,
बलात्कार कहां रुक पा रहा।

अरे ओ शराफ़त का ढोंग रचने वालों,
ज़मीर तुम्हारा मरा जा रहा,
वो सुकून में हैं जहां हैं, तुम्हें तो ईश्वर मौत को भी तरसा रहा।

अब जागना मत ए सोने वालों, काली की रात का समय आ रहा,
कलम होगा, सर एक एक का,
एहसास क्या तुम्हें भी का रहा..?
© a_girl_with_magical_pen