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Prem granth
आज फिर कुछ दिनो के बाद देहरी की दिवार पे, बाटता चारा जोडा कौवो का नजर आया! पूरब की उठती लालिमा से चेहरे पे है नूर छाया, लग रहा किसी के आने की खबर दिल मे पुरजोर आया!! मन के आगन को गुद गुदाती ये धडकने है, लग रहा भरने मागको तेरी कोई है सिन्दूर लाया!!! कल रात जो दिदारे ख्वाब था तेरे हृदय का, लग रहा सामने तेरे तेरा वो चँlद आया!!!! कल रात ही तो उसने की थी अठखेलिया तेरे लबो से, लग रहा तेरे लबो पे हौले से मेरा ही नाम आया!!!!! कल रात उसने तेरे लबो पे बोसो कि की पुरजोर बारिश, मन मचलता है तेरा तु पुरजोर भिगे जा कर उसके आगोश मे!!!!!! ढुढता था जो तुझे पिछले जन्म से, कोन है जो आज दस्तके - ऐ- दिल मे इतनी दूर आया!!!!!!! मानता है मन नही अब दूर है मुझसे वो कैसे, जिसकी इक छुअन से तुझमे है सुरूर छाया!!!!!!!! लग रहा हो गयी तु मल्लिकाये कायनात अब, तुझमे भी है अब ऐ गुरूर आया!!!!!!!!!! बीतता है न पहर अब बिन याद के उसके, ऐ कैसा समय है ! कूरूर आया!!!!!!!!