...

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प्रेम से मुक्ति प्रेम के लिए
बात प्रेम की मत करो
वो यंत्र है शोषण का
उसमें खुद को ना डुबाओ
वो दरिया है दोहन का
एक गल हो गई मुझसे भी
बहकावे में जो आ गया
कुछ एक दार्शनिकों के
जो खुद तो सिंहासन रूढ़ थे
किसी निर्बल की आत्मा पर
और बाँट रहे थे ज्ञान वो
इस कम्बख्त शब्द प्रेम का
जब तुम किसी में बंध जाओ
खुद के बस से निकल जाओ
तब समझो...