...

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दिल
ख्वाहिशों की डगर में दिल मचल सा रहा था
अंदर ही अंदर कुछ कह सा रहा था

कब खत्म होगा ये इम्तिहान का मंजर कहीं ना कहीं वह अपने ही सवालों में उलझ सा रहा था

शहम सा गया वो मंजिल की राह को देखकर
कैसे पूरा होगा उसका ये रास्ता सोचकर यही घबरा सा रहा था

पता नहीं था उसे क्या होगा उसका परिणाम ,खुशियों की चाह में वो बहक सा रहा था।