...

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है नहीं
अब ख़ंजरों पर दिल ये रखने की रवायत है नहीं,
अब बातें भी बे-बाक़ कहने की रिआयत है नहीं.

बोलकर भी करते क्या, अब कौन है सुनता मेरी,
कि चुप रहूं मैं तो किसी को भी शिकायत है नहीं.

मजबूर उम्मीदों से दिल की झुकते हैं हर रोज़ पर,
अब तलक़ उस पत्थर की हम पे इनायत है नहीं.

बेहतर है कि जज़्ब कर लें इक भली सी बात को,
कि सुनते ही बेहतर बना दे, ऐसी आयत है नहीं.

बेज़ार हैं हर दिन हर लम्हा, इस क़दर उनके लिए,
कि 'ज़र्फ़' में अब गर्म-जोशी की सरायत है नहीं.
© अंकित प्रियदर्शी 'ज़र्फ़'

रवायत - रीति, रिवाज़ (custom)
रिआयत - छूट, आज़ादी (spared, free)
इनायत - कृपा (favor)
जज्ब - समाहित करना (absorb)
सरायत - किसी बात या वस्तु का एक से दूसरे व्यक्ति में प्रवेश (to be taken up from some other person)
अर्ज़ किया है.........
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