...

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तुम्हे तुम्हारा मौन नोच डालेगा..
नव अंकुर सी कली ना जाने कौन नोच डालेगा..
हे गूंगे मालियों तुम्हे तुम्हारा मौन नोच डालेगा..

देश धर्म और राष्ट्रवाद की बातें करते हो बड़ी बड़ी..
फिर क्यों तुम्हारी छाया में हैं,यह मासूम बेटियां डरी..
राजनीती और भृष्टाचार से फुर्सत गर तुम पा जाओ ..
तो ऑंखें खोलकर देख लो,दर पर लहूलुहान बेटियां खड़ी..

देशभूमि की दिव्यं मढ़ियाँ,आतीं घर स्वर्ग बनाने को..
और यहाँ पर कितने दानव घूमें उन्हें जलाने को..
2 महीने, 2 - 4 बरस की बच्ची अभय नहीं है जब..
तो क्या रह जाता है समाज में अमृतकाल मानाने को..

पर मरे हुए मतलबियों में अब कौन आक्रोश डालेगा..
हे गूंगे मालियों तुम्हे तुम्हारा मौन नोच डालेगा..

किसी के दिल का सुंदर सपना किसी की प्यारी गुड़िया सी..
मात पिता के गम हर लेती, छोटी जादू की पुड़िया सी..
महापाप कंपकंपा उठा जब देखा वह दृश्य घृणित उसने..
बिलख के बोला छोड़ उसे,वह बेटी देवी की मढ़िया सी..

ममता में शीतल हो अग्नि भी,जिन्हे जलाने से पहले..
करुणा में शूल भी बनें फूल जिनको चुभ जाने से पहले..
कौन भेड़िया कौन जानवर कौन दरिंदा होगा वह..
जिसका ना ह्रदय फटा कन्या पर आँख गड़ाने से पहले..

है कन्या ही कल्याणी,बेटों में कौन यह सोच डालेगा..
हे गूंगे मालियों तुम्हे तुम्हारा मौन नोच डालेगा..
© ललित श्रीवास्तव"शब्दवंशी"