...

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मन बंजारा
बिछड़कर आसूँ बहाता रहा कोई
मिलन की आस लिये जी रहा कोई

प्रियतमा से दूर तडप रहा कोई
तन्हाई मे जूठ को सच्च मान रहा कोई

प्यार में धोखा लिये मुस्कुराता रहा कोई
दर्द में डूबे मन को समजाता रहा कोई

अजनबी शहरों में अपना खोज रहा कोई
रिस्तो के एहसास को जुटलाता रहा कोई

सपनो की दुनिया से परे भाग रहा कोई
हकीकत से नजरें चुरता रहा कोई

दूर फिरंगी बन कर घूम रहा कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई

-आगम