...

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जिंदगी



जिंदगी से रुबरु क्या हुए
हर सवाल का जवाब मिल गया,
रूके न हम न पीछे मुड़कर देखें
सौगात जो भी मिला गले लगा लिया।
कभी पतझड़ , कभी बसंत
कभी धूप तो कहीं छाया
कल की इसे खबर नहीं
पल में बदल लें काया।
कभी बन अबुझ पहेली
कर जाती मन को बेचैन
पलक झपकते ही दे जाती
रंगीन ख्वाबों का धरोहर।
जिंदगी को समझ न पाये
न संत न फकीर,
छोर इसके हाथ न आया
क्या अमीर क्या गरीब।
बस फूलों की क्यारी है
मिले तो शुक्रिया कीजिए,
दो दिनों की जिंदगानी
बन इत्र महका कीजिए।

🙏🙏🙏🙏