...

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मोरा पीय
मोरा पीय मोह से बोलत नाहीं।
जाने न काहे रूठे बैठे हैं, घुंघट पट खोलत नाहीं।
सोरह श्रृंगार, सजाई सेजरिया, पर मुंह फेरत नाहीं।
नैनन मे भरी-भरी कजरवा, तनिको पर चितवत नाहीं।
हाथ में मेंहदी, पांव महावर, कौनो रंग भावत नाहीं।
माथे पे बिंदिया, अधर गुलाबी, हिय हरसावत नाहीं।
रूठे बैठे हैं कबहिं से, भेद जिय खोलत नाहीं।
तन्हाई मे बीत गयो रैना, निंदिया आवत नाहीं।
“मृत्युंजय” जरा चेत कराओ, मोहि से मानत नाहीं।

© मृत्युंजय तारकेश्वर दुबे।
कोलकाता.

© Mreetyunjay Tarakeshwar Dubey