...

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ऐसा भी हूँ मैं
हँसते हँसाते खुद को , कभी रो देता भी हूँ मैं
खुद से ही खुद को मिलाके ,कभी खो देता भी हूँ मैं
बुन के ख्वाहिशों की चादरे , खुद अधेड़ लेता भी हूँ मैं
समेट कर सारी खुशियां को अपने, खुद ही बिखेर देता भी हूँ
हँसते हँसाते खुद को , कभी रो देता हूं मैं.......

स्वपन देखे हैं खुली आंखों से ,उनको पूरा भी करना होगा
मंजिल तक जाना हैं तो , कंटक भरे राह से गुजरना भी होगा
कभी छू लेता हु पर्वत , कभी नीचे गिर जाता भी हूँ मैं
खा कर खुद ठोकरें,...