...

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सूखे गुलाब
किताबों में जब भी मुझे सूखे गुलाब मिले
आंखों में मेरी फिर से हज़ारों ख़्वाब खिले

दिल का चैन रातों का सुकून खोया मैंने
ख़्वाहिश थी दिन में दीदार ए माहताब मिले

काश उनकी सूरत एक बार मुझे दिख जाती
बाज़ार जब गया चेहरे छुपे बस हिजाब दिखे

मोहब्बत उनसे तो बेपनाह कर ली थी मैंने
अहल ए शहर ने कितने ही मुझे ख़िताब दिये

थक गया हूॅं तन्हा सफ़र करते करते मैं "हिना"
चाहता हूॅं मैं अब तो कोई मुझे दिल-ए-नाब मिले
© Hina