...

10 views

javab ...
कोई ख़याल

और कोई भी जज़्बा

कोई भी शय हो

जाने उसको

पहले-पहल आवाज़ मिली थी

या उसकी तस्वीर बनी थी

सोच रहा हूँ



कोई भी आवाज़

लकीरों में जो ढली

तो कैसे ढली थी

सोच रहा हूँ

ये जो इक आवाज़ अलिफ़ है

सीधी लकीर में

ये आिख़र किसने भर दी थी

क्यों सबने ये मान लिया था

सामने मेरी मेज़ पे इक जो फल रक्खा है



इसको सेब ही क्यों कहते हैं

सेब तो इक आवाज़ है

इस आवाज़ का इस फल से

जो अनोखा रिश्ता बना है

कैसे बना था

और ये टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें

जिनको हर्फ़ कहा जाता है

ये आवाज़ों की तस्वीरें

कैसे बनी थीं

आवाज़ें तस्वीर बनीं

या तस्वीरें आवाज़ बनी थींr

सोच रहा हूँ



सारी चीज़ें

सारे जज़्बे

सारे ख़याल

और उनका तआरूफ़

उनकी ख़बर और

उनके हर पै॰गाम को देने पर फ़ाइज़

सारी आवाज़ें

इन आवाज़ों को अपने घर में ठहराती

अपनी अमान में रखती

टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें

किस ने ये कुनबा जोड़ा है

सोच रहा हूँ।