...

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धूप के सफ़र में
धूप के सफ़र में कुछ ख़्वाब मेरे अब तो आँख मलने लगे हैं,
कैसे चलूँ ऐ ज़िंदगी तू ही बता अब तो पैर भी जलने लगे हैं,
बिखरे ख़्वाब कुछ ऐसे कि मंज़िल की ख़्वाहिश ही न रही,
कुछ ज़िम्मेदारियाँ लिए हम मंज़िल से आगे निकलने लगे हैं,
थोड़ा ठहर जाते तो जी लेते हम भी शायद फिर से खुशी के पल,
पर क्या करें ज़िन्दगी के नाम पर हम मौत से गले मिलने लगे हैं।