खिड़की - एक प्रेम कथा❤
मेरी खिड़की से दिखता है घर उसका,
एक टक टिकी रहती मेरी नजर है,
जरा कदम भी रखे जमीन पर वो,
होती हृदय में मेरे हलचल है,
बालकनी पर जब जिम वो करता है,
हाय! कैसे कहूं बस नहीं दिल पर तब चलता है,
खुद को रोक नहीं पाती हूं,
देखने को करीब से तुझे मैं,
खिड़की पर टेलिस्कोप लगाती हूं,
करीब जानकर तुझे मैं अपने,
बार बार खिड़की से लिपट जाती हूं,
अब लोग कहेंगे शरम करो...
इन बातों से भी नहीं रुक पाती हूं,
कई दफा खिड़की से तुझ संग,
ब्रेकफास्ट, लंच,...
एक टक टिकी रहती मेरी नजर है,
जरा कदम भी रखे जमीन पर वो,
होती हृदय में मेरे हलचल है,
बालकनी पर जब जिम वो करता है,
हाय! कैसे कहूं बस नहीं दिल पर तब चलता है,
खुद को रोक नहीं पाती हूं,
देखने को करीब से तुझे मैं,
खिड़की पर टेलिस्कोप लगाती हूं,
करीब जानकर तुझे मैं अपने,
बार बार खिड़की से लिपट जाती हूं,
अब लोग कहेंगे शरम करो...
इन बातों से भी नहीं रुक पाती हूं,
कई दफा खिड़की से तुझ संग,
ब्रेकफास्ट, लंच,...