दर्द की इंतहा
दर्द की इंतहा हो गई, इक रात से सुबह हो गई, नूर टिकता नहीं नज़र में, मौत भी अब जाम हो गई, दर्द की इंतहा हो गई उनकी रहमत मिले न मिले, दिल के फूल खिले न खिले, आसूं बन जाये अंगार क्या? क्यों किस्मत ठगी-सी हो गई? दर्द की इंतहा हो गई लोग कहते है क्या-क्या नहीं? लोग करते है क्या-क्या नहीं? इक घर की चाहत में, जिन्दगी क्यों? इक घर से दूर हो गई !
© Pramod Kumar
© Pramod Kumar