...

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ऐ रब
ऐ रब,

तेरा घर हैं तेरा मस्जिद

चैन,सुकून,राहत

हैं अखीरत का मंजिल।

तेरे घर में तो मुझे तु मिला हैं,

ये तो तुझे भी पता

मुझको क्या मिला हैं,

मुझे लगा तु मेरे और

में तेरा क़रीब।

ऐ रब,,,

मुझे कबूल कर मसरूफियत में

तेरा ज़िक्र में सदा मशगूल रहूं

और तेरा दीदार मिले।

मुझे नसीब कर तेरा वे घर भी देखूं

जहां तेरा महबूब सोया हैं,

मोहब्बत से पेशानी रखलु

छु लु मिट्टी क़रीब से।।

ऐ रब,,,

जब भी मेरे आंखे नम हो

मुझे करीब करके सुला देना,

मुझे नाज़ हैं तेरे खुदाई पर

मेरे दर्द में, तु मुझे सम्हालना।।

ऐ रब,,,

इबादत से हमे न कर गाफिल,

हम, तेरे ही तो बंदे हैं।

सत्तर मा की मोहब्बत

एक तेरे मोहब्बत में नाजिल।।

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© Afi@