समंदर और तुम!
#realm_cupid
अडोल खड़ी हूँ,
समंदर के किनारे,
समंदर गरजता मुझ ही में,
वो नस नस में
बह रहा बन तेरे स्पर्श का उन्माद,
वो रक्त जो उष्ण हो
हिलोरे ले रहा मेरे बदन में,
आह्वान कर रहा
पाने को तेरा सान्निध्य,
फिर, फिर उस आह्लाद को,
बहने देती हूँ अपने भीतर,
समा लेती हूँ स्थिरता सह,
तीव्र प्रवाह को,
और मेरे नैन हो जाते,
कमल के फूल की पत्ती,
मेरा चेहरा,
समेटे ज्यों गुलाब की शोखी,
मेरे होठ जैसे शहद की मिठास,
मेरी आत्मा में तेरा ही उजास,
मेरे अस्तित्व का कण कण,
अपनी अलग थलग भाषा से,
तेरे लिए कविता बुन रहा,
और मैं?
प्रेम में या प्रेम ही,
कुछ नहीं बस,
अडोल खड़ी हूँ।
©jignaa___
अडोल खड़ी हूँ,
समंदर के किनारे,
समंदर गरजता मुझ ही में,
वो नस नस में
बह रहा बन तेरे स्पर्श का उन्माद,
वो रक्त जो उष्ण हो
हिलोरे ले रहा मेरे बदन में,
आह्वान कर रहा
पाने को तेरा सान्निध्य,
फिर, फिर उस आह्लाद को,
बहने देती हूँ अपने भीतर,
समा लेती हूँ स्थिरता सह,
तीव्र प्रवाह को,
और मेरे नैन हो जाते,
कमल के फूल की पत्ती,
मेरा चेहरा,
समेटे ज्यों गुलाब की शोखी,
मेरे होठ जैसे शहद की मिठास,
मेरी आत्मा में तेरा ही उजास,
मेरे अस्तित्व का कण कण,
अपनी अलग थलग भाषा से,
तेरे लिए कविता बुन रहा,
और मैं?
प्रेम में या प्रेम ही,
कुछ नहीं बस,
अडोल खड़ी हूँ।
©jignaa___