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उक्ति प्रस्तुति (आप मरे जग प्रलय )
मृत्यु उपरांत सब कुछ इंसान का छूट जाता है,
जितने हैं रिश्ते सब कहीं
वक्त के साथ विलुप्त हो जाता है!
यह जो नश्वर शरीर है मोह माया के बंधन को
तोड़ मुक्त नहीं हो पाता है!!

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जितना है कमाया शोहरत,मान, सम्मान,धन
सब यहाँ धरा का धरा रह जाता है !
जीवन के परम सत्य को जानकर भी मनुष्य,
पाप कर तृप्त हो जाता है!!

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जब तक चलती है साँसे तुच्छ मानव नश्वरता,
पर घमंड कर गरीबों से भेदभाव करता है !
अंत में हाल सबका वही होना है,
तो क्यों शोक संतप्त समझ नहीं पाता है!!

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बचपन से लेकर वृद्धावस्था
तक जितने भी सजोए है,
रिश्ते सब से मोतियों की
माला की तरह हाथ से छूट जाता है!
फिर भी इस क्षणभंगुर शैय्या पर लेट कर भी,
मृगतृष्णा की तलाश में अतृप्त ही रह जाता है!!

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रह जाती है तो बस उसके किए अच्छे कर्म की,
धुंधली सी याद का स्वरूप
आँखों को नम कर जाता है!
आती है अंतिम घड़ी मनुष्य
की तो सब संसार उसे अंधेरा
और नेक नजर आता है!!

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देखती है रूह उसकी अपने जलती हुईं चीता को,
पर ईश्वर के नियम के विरुद्ध बंधा कालचक्र में इंसान
मिट्टी के पाँच तत्वों में विलीन हो जाता है !
पर संसार से कुछ भी ले कर वहाँ नहीं जा पाता है!

_Dolly Prasad ♥

© Paswan@girl