उक्ति प्रस्तुति (आप मरे जग प्रलय )
मृत्यु उपरांत सब कुछ इंसान का छूट जाता है,
जितने हैं रिश्ते सब कहीं
वक्त के साथ विलुप्त हो जाता है!
यह जो नश्वर शरीर है मोह माया के बंधन को
तोड़ मुक्त नहीं हो पाता है!!
🌸🌿🌸🌿🌸🌿🌸🌿🌸🌿🌸🌿🌸🌿🌸🌿🌸🌿
जितना है कमाया शोहरत,मान, सम्मान,धन
सब यहाँ धरा का धरा रह जाता है !
जीवन के परम सत्य को जानकर भी मनुष्य,
पाप कर तृप्त हो जाता है!!
🌸🌿🌸🌿🌸🌿🌸🌿🌸🌿🌸🌿🌸🌿🌸🌿🌸🌿
जब तक चलती है साँसे तुच्छ मानव नश्वरता,
पर घमंड कर गरीबों से भेदभाव करता है !
अंत में हाल सबका वही होना...
जितने हैं रिश्ते सब कहीं
वक्त के साथ विलुप्त हो जाता है!
यह जो नश्वर शरीर है मोह माया के बंधन को
तोड़ मुक्त नहीं हो पाता है!!
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जितना है कमाया शोहरत,मान, सम्मान,धन
सब यहाँ धरा का धरा रह जाता है !
जीवन के परम सत्य को जानकर भी मनुष्य,
पाप कर तृप्त हो जाता है!!
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जब तक चलती है साँसे तुच्छ मानव नश्वरता,
पर घमंड कर गरीबों से भेदभाव करता है !
अंत में हाल सबका वही होना...