ताकती शून्य की ओर...तुम मन्दस्मित।
#WritcoPoemPrompt88
ताकती किसी शून्य को-
उधर तुम्हारे बाल हवाओं से हर्षित
कि संकुचन नहीं तुम्हारे माथे किंचित
और सुबह की धूप है गिरती
आड़ी तिरछी हो आकर्षित
इस प्रातः...
ताकती किसी शून्य को-
उधर तुम्हारे बाल हवाओं से हर्षित
कि संकुचन नहीं तुम्हारे माथे किंचित
और सुबह की धूप है गिरती
आड़ी तिरछी हो आकर्षित
इस प्रातः...