मैं सतरंगी सपने बुनती हूँ
जिंदगी की उलझनों के बीच
कुछ पल के लिए ही सही
मैं सतरंगी सपने बुनती हूँ
निराशाओं के तम से निकलकर
एक किरण रोशनी की चुनती हूँ
तन्हा और खामोश से बैठी
खास रिश्तों को गिनती हूँ
जाने कितने...
कुछ पल के लिए ही सही
मैं सतरंगी सपने बुनती हूँ
निराशाओं के तम से निकलकर
एक किरण रोशनी की चुनती हूँ
तन्हा और खामोश से बैठी
खास रिश्तों को गिनती हूँ
जाने कितने...