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शरहद पे मैं रहता हूँ ,फौजी मैं कहलाता हूँ ।
शरहद पे मैं रहता हूँ ,फौजी मैं कहलाता हूँ ।

हसते हसते सब कुछ सह जाता हूँ ,

साहेब की तारीफ, बीबी का प्यार,

कभी-कभी मैं पाता हूँ ॥

शरहद पे मैं रहता हूँ, फौजी मैं कहलाता हूँ -२

ग्लेशियर की हो ठंड या फिर जैसलमेर की तपती दोपहरी ,

अपने देश की मिट्टी के लिए मैं रहता हूँ मर मिटने को हरपल रेड्डी ॥

जी साहेब शरहद पे मैं रहता हूँ, फौजी मैं कहलाता हूँ ।

कभी-कभी मैं गॉव भी हो आता हूँ ।

घर जाकर मैं दादी और माँ के आँचल में सो जाता हूँ ।

जी साहेब कभी -कभी मैं भी गॉव हो आता हूँ ।

अपने बगीचे मैं झूला भी झूल आता हूँ ।

माँ की प्यार भरी थाली भी खा आता हूँ ।

अपनी प्राणप्रिये को भी रोते हुए छोड़ आता हूँ ॥

क्योंकि शरहद पे मैं रहता हूँ, फौजी मैं कहलाता हूँ ।

शरहद पे मैं रहता हूँ, फौजी मैं कहलाता हूँ ।

विडंबना है इस देश की कभी -कभी मैं पागल भी कहलाता हूँ ।

इस टाइटल को भी मैं हसते हसते अपनाता हुँ ,

फिर एक दिन मैं सीने पर गोली खाता हूँ ।

मैं देश प्रेम मे पागल हसते - हसते ये भी कर जाता हूँ ॥

शरहद पे मैं रहता हूँ ,फौजी मैं कहलाता हूँ

शरहद पे मैं रहता हूँ, फौजी मैं कहलाता हूँ

शरहद पे मैं रहता हूँ , फौजी मैं कहलाता हूँ ॥।॥



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सिद्धार्थ_के_अल्फ़ाज़
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