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हम कुम्हार अपनी माटी के...
हम कुम्हार अपनी माटी के,
ख़ुद को बना- मिटा सकते है।
जीवन के चाक को चला इसे मोहिनी मुरत बना सकते हैं।
मगर विडंबना ये देखिए की अपने जीवन के चाक को स्वतः ही दूसरों को सौंप देते हैं।
अपनी माटी रूपी जीवन के कुम्हार होते हुए भी किसी और को कुम्हार बना देते हैं।
© Aayushi Shandilya