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#सत्य@बोलना%कला
सत्य बोलने की कला,
जानना है जरूरी।
वरना बनी रहेगी,
आफत और मज़बूरी,
करनी पड़ेगी बबुआ,
ज़िंदगी भर मज़दूरी।
उम्र ढल जाएगी,
न होगी कोई इच्छा पूरी।
सत्य का यह काल नहीं,
ना ही हरिश्चंद्र का।
कला चाहिए वरना होगा,
ताज़उल्लूचंद का।
सत्य बोलो, प्रिय बोलो,
मुँह खोलो, पहले तोलो।
घोड़े की पिछाड़ी,
साहब की अगाड़ी मत...