क्या होगा
क्या होगा उस दिन
जिस दिन मैं दिनभर तुम्हारे इंतज़ार में हूंगी
और शायद तुम आ जाओं
मुझे बाहों में भर लो
और बोल दो
पगली आज़ भी नहीं सुधरी
क्यों सुबह से शाम किया
क्यों पूरा दिन आज़ फिर इंतज़ार किया
या फिर ऐसा भी हो
तुम ना आओ
मैं इंतज़ार करती रहूं,उस अनंत काल तक
ऐसे ही एकटक निहारती रहूं उस अनंत तक
जहां तक नज़रें कुछ भी न देख पाती हो
लेकिन फिर देखती है
रुक जाती हो मेरे इस इंतज़ार की तरह
इसमें समय तो बीतता है सबका
पर मेरा नहीं बीतता,वर्तमान की तरह
ये चला आ रहा है सदियों से
बिना रुके,बिना परवाह किये
अमर झरनाओं के जैसा
निर्झर,सुकुमार सा गीत बनाने के लिए
जो पत्थरों से टकराता है प्रेम संगीत की तरह
मिलते जाता है गले इसलिए कि
शायद ना मिलूं कभी
मुड़कर भी नहीं देखता, उस कठोर वैराग्य की तरह ।
क्या होगा उस दिन
जब इंतज़ार करते - करते मैं भटक जाऊं किसी मरुस्थली मरुभूमि...
जिस दिन मैं दिनभर तुम्हारे इंतज़ार में हूंगी
और शायद तुम आ जाओं
मुझे बाहों में भर लो
और बोल दो
पगली आज़ भी नहीं सुधरी
क्यों सुबह से शाम किया
क्यों पूरा दिन आज़ फिर इंतज़ार किया
या फिर ऐसा भी हो
तुम ना आओ
मैं इंतज़ार करती रहूं,उस अनंत काल तक
ऐसे ही एकटक निहारती रहूं उस अनंत तक
जहां तक नज़रें कुछ भी न देख पाती हो
लेकिन फिर देखती है
रुक जाती हो मेरे इस इंतज़ार की तरह
इसमें समय तो बीतता है सबका
पर मेरा नहीं बीतता,वर्तमान की तरह
ये चला आ रहा है सदियों से
बिना रुके,बिना परवाह किये
अमर झरनाओं के जैसा
निर्झर,सुकुमार सा गीत बनाने के लिए
जो पत्थरों से टकराता है प्रेम संगीत की तरह
मिलते जाता है गले इसलिए कि
शायद ना मिलूं कभी
मुड़कर भी नहीं देखता, उस कठोर वैराग्य की तरह ।
क्या होगा उस दिन
जब इंतज़ार करते - करते मैं भटक जाऊं किसी मरुस्थली मरुभूमि...