...

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क्या होगा
क्या होगा उस दिन
जिस दिन मैं दिनभर तुम्हारे इंतज़ार में हूंगी
और शायद तुम आ जाओं
मुझे बाहों में भर लो
और बोल दो
पगली आज़ भी नहीं सुधरी
क्यों सुबह से शाम किया
क्यों पूरा दिन आज़ फिर इंतज़ार किया
या फिर ऐसा भी हो
तुम ना आओ
मैं इंतज़ार करती रहूं,उस अनंत काल तक
ऐसे ही एकटक निहारती रहूं उस अनंत तक
जहां तक नज़रें कुछ भी न देख पाती हो
लेकिन फिर देखती है
रुक जाती हो मेरे इस इंतज़ार की तरह
इसमें समय तो बीतता है सबका
पर मेरा नहीं बीतता,वर्तमान की तरह
ये चला आ रहा है सदियों से
बिना रुके,बिना परवाह किये
अमर झरनाओं के जैसा
निर्झर,सुकुमार सा गीत बनाने के लिए
जो पत्थरों से टकराता है प्रेम संगीत की तरह
मिलते जाता है गले इसलिए कि
शायद ना मिलूं कभी
मुड़कर भी नहीं देखता, उस कठोर वैराग्य की तरह ।

क्या होगा उस दिन
जब इंतज़ार करते - करते मैं भटक जाऊं किसी मरुस्थली मरुभूमि में
और प्यास के मारे
मुझे कुछ ना दिखाई दे
और मैं रो पड़ूं एकदम से नि:सहाय
कभी प्यास बुझाने की आस में
तो कभी तुम्हें जीभर देखने की उम्मीद में
कभी तुम्हारे प्यार की नर्म छांव ढूंढते - ढूंढते
मैं किसी नुकीले कांटों पर पैर रख दूं
फिर भी मैं चलती रहूं और ना कभी रुकूं
पर मुझे ये भी पता होगा
कि तुम अब मुझे नहीं मिलनेवाले
लेकिन मैं उम्मीद नहीं छोडूंगी
तुम्हारा इंतज़ार करती रहूंगी अनंत काल तक
जहां पर उस काल का भी,कलेजा दुखेगा
देख मेरे ना मरते इंतज़ार को
क्योंकि मैंने वादा किया है तुमसे
मिलके रहूंगी मैं,तुमसे हर हाल में
नहीं मिल सके जो कोई सवाल के किसी भी जवाब में
नहीं मिल सके जो इस जनम में
अगले जनम में मिलने के, इकरार पे
नहीं मिल सके जो किसी आईने की तस्वीर में
आसमां में रहने वाले उस बादल की तरह
जो क़रीब होते हैं बेहद एक - दूसरे के
लेकिन नहीं मिलते
बस साथ - साथ रहते हैं किसी हमदर्द की तरह
तुम वही ज़िद्द बनना
जो ना मिलना चाहता हो मुझसे
फिर भी मैं इंतज़ार करती रहूं ऐसे
जैसे अब,अभी और इसी वक्त मिल जाओगे तुम हमसे
बनके कोई पवन,कोई घटा,कोई बादल
गुज़र जाओगे मुझसे होकर
बिना बताए मुझे
क्योंकि तुम्हें अच्छा लगता है मेरा इंतज़ार,मेरा इकरार
मेरा यूं बेकरार रहना और करते रहना सिर्फ़ और सिर्फ़ एक लंबा सा इंतज़ार।।



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