कहानी बेटी की••••
नन्ही सी कली थी आंगन की,पग की पैजनी छनकाती थी
श्रृंगार सज़ा कर मुखड़े पर ,वो शर्माती बलखाती थी
कभी रोटी थी कभी हँसती थी कभी मध्य रात वो जगाती थी
कोमल मन मुख सज्जित करके पिताजी कहके बुलाती थी
रोती तो चुप ना होती थी हँसती तो सबको हँसाती थी
अपनी प्यारी मुस्कानों से वो सबका मन बहलाती थी
तन कोमल पुष्प के जैसा था मन सरल भाव शर्माती थी
तनया थी बनी वो माता की पिता की राज दुलारी थी
हो जाऊं उससे रुष्ठ कभी नैनो में नीर भर लाती थी
गोदी में बैठे शाशन से मीठे...
श्रृंगार सज़ा कर मुखड़े पर ,वो शर्माती बलखाती थी
कभी रोटी थी कभी हँसती थी कभी मध्य रात वो जगाती थी
कोमल मन मुख सज्जित करके पिताजी कहके बुलाती थी
रोती तो चुप ना होती थी हँसती तो सबको हँसाती थी
अपनी प्यारी मुस्कानों से वो सबका मन बहलाती थी
तन कोमल पुष्प के जैसा था मन सरल भाव शर्माती थी
तनया थी बनी वो माता की पिता की राज दुलारी थी
हो जाऊं उससे रुष्ठ कभी नैनो में नीर भर लाती थी
गोदी में बैठे शाशन से मीठे...