...

27 views

मेरा जीवन
साँसों में सिमरू,
अश्कों से छलकाऊं,
झर-झर झरते नैनों से
मैं तुम पर रीझि जाऊँ
घड़ी घड़ी की सिसकन में
मैं पल पल
आर्तभाव से तुम्हें पुकारूँ
येन केन प्रकार से.. हे..
दुर्लभ प्रभूजी मैं तुमको सुलभ बनाऊँ
बताओ तो प्रभूजी....
कैसे तुम्हें रिझाऊँ...
मैं कैसे तुम्हें रिझाऊँ..
यदि मेरे बस का होता,
तो अबतक तुम रीझ जाते..
पल पल मदद को हाज़िर तुम..
मुझसे.. यूँ ना नैना चुराते..
हरबार बीच मझधार से मुझे किनारे ले आते...
किन्तु तेरी अद्वितीय कृपा का हम तो पार न पाते..
बताओ प्रभुजी कैसा चरित्र बनाऊँ..
हमसफर बनोगे मेरे,या मैं ही जोगन बन जाऊं..
साँसों की मध्यम ताल रोक कर,
मैं जड़वत हो जाऊँ..
फिर तो आकर हाथ रखोगे सिर पर..
जब मृत्यु शय्या पर सो जाऊँ..
घुटकर जीने की नहीं, चाह प्रभूजी,
न मृत्यु का भय बचा...
तेरी शरण में आने से,ये मैं भी तो मैं न रहा।

ऐसी भावुक रचना के लिये
आभार प्रभूजी।
#प्रभुकृपा #@Lali9533 #Soul-nature #Natureworkhard #हमसफर #Life-advente #Travel #निष्काम #Mythology #FanFiction



© nikita sain