...

11 views

कोलकाता - एक दंश 😞😞😞
था नोच रहा तू अंतर्मन था नोच रहा तू जीवन को
मै सबकी रक्षक जैसी थी थी पोस रही हर जीवन को
कुछ डरी और घबराई भी मै थी भय से अकुलाई भी
बेबस मन बेबस सारे क्षण मृत्यु भी कैसी आयी थी
छिन्न भिन्न सब ख्वाब मेरे जो थे पल भर में राख हुए
न तनिक शर्म आयी तुमको मन से कुत्ते तुम बाघ हुए
कैसा ये तृष्णा का घेरा वहसी के झुण्ड ने था घेरा
था छूट रहा था टूट रहा मेरा न रहा जो था मेरा
इच्छा थी उस निर्मम पल में बस...