समय की थाप
नृत्य का पहलू एक ऐसा
खड़ा मेरे जीवन के अँगना
घुंघरू मेरी हंसी के टूटे
भाए मुझे ख़ुद में ही घुटना
लेश मात्र सरगम सुख की
लय बद्ध हर कड़ी दुख की
सुरमयी संगीत भावनाओं का
थमे कभी अब मेरे पग ना
समय ना देखे बस नृत्य कराए
अपनी हमें कठपुतली बनाए
थके कदम ना रुके थिरकना
गिरकर भी ना आया संभलना
क्षणभंगुर के सब अभिलाषी
सच्चा ना यहाँ कोई हितैषी
संघर्ष की अग्नि में बस तपना
ना हो उजियारा, ना स्वर्ण बनना
भाव-विभोर नहीं, अब हृदय शून्य
उधड़े अस्तित्व का मात्र समन्वय
शूलों पर आजीवन यही नृत्य करना
अधीन समय की थाप पे अनवरत थिरकना .......
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