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" नारीशाला "
मेरे मृदु भावो को निर्दइयों ने कठोर बना डाला
इन हाथो ने भी देखो उठा लिया है भाला
पहले स्वयं को बना लू फिर जग बन जाएगा
सबसे पहले नारी तुझको पढ़ाती तेरी नारीशाला
प्यास तुझे सफलता की तपकर तूने खुद को निखार डाला
उठ चढ़ निरंतर सफलता की सीढ़ी देखे हर गिराने वाला
जीवन अपना कबका तूने सब पर वॉर दिया
आज निवछावर कर खुद पर तुझे पढ़ाती तेरी नारीशाला
कभी बनी प्रियतमा कभी औरो की खुशियों की माला
सब तुझसे ही पाकर बन जाता है तेरा रखवाला
मत छलका अब दर्द अपना बन दर्द मिटाने वाला
अब बनेगी हर नारी एक - दूजे की नारीशाला
भावुकता रख अदा में पहन स्वाभिमान की ज्वाला
कवित्री शिक्षिका बन आयी है भरकर भावो का प्याला
कभी न अब झुकना तू लाख झुकाये झुकाने वाला
हर नारी है पढ़ने वाली कविता मेरी नारीशाला
© Gayatri Dwivedi
इन हाथो ने भी देखो उठा लिया है भाला
पहले स्वयं को बना लू फिर जग बन जाएगा
सबसे पहले नारी तुझको पढ़ाती तेरी नारीशाला
प्यास तुझे सफलता की तपकर तूने खुद को निखार डाला
उठ चढ़ निरंतर सफलता की सीढ़ी देखे हर गिराने वाला
जीवन अपना कबका तूने सब पर वॉर दिया
आज निवछावर कर खुद पर तुझे पढ़ाती तेरी नारीशाला
कभी बनी प्रियतमा कभी औरो की खुशियों की माला
सब तुझसे ही पाकर बन जाता है तेरा रखवाला
मत छलका अब दर्द अपना बन दर्द मिटाने वाला
अब बनेगी हर नारी एक - दूजे की नारीशाला
भावुकता रख अदा में पहन स्वाभिमान की ज्वाला
कवित्री शिक्षिका बन आयी है भरकर भावो का प्याला
कभी न अब झुकना तू लाख झुकाये झुकाने वाला
हर नारी है पढ़ने वाली कविता मेरी नारीशाला
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