...

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" नारीशाला "
मेरे मृदु भावो को निर्दइयों ने कठोर बना डाला
इन हाथो ने भी देखो उठा लिया है भाला
पहले स्वयं को बना लू फिर जग बन जाएगा
सबसे पहले नारी तुझको पढ़ाती तेरी नारीशाला

प्यास तुझे सफलता की तपकर तूने खुद को निखार डाला
उठ चढ़ निरंतर सफलता की सीढ़ी देखे हर गिराने वाला
जीवन अपना कबका तूने सब पर वॉर दिया
आज निवछावर कर खुद पर तुझे पढ़ाती तेरी नारीशाला

कभी बनी प्रियतमा कभी औरो की खुशियों की माला
सब तुझसे ही पाकर बन जाता है तेरा रखवाला
मत छलका अब दर्द अपना बन दर्द मिटाने वाला
अब बनेगी हर नारी एक - दूजे की नारीशाला

भावुकता रख अदा में पहन स्वाभिमान की ज्वाला
कवित्री शिक्षिका बन आयी है भरकर भावो का प्याला
कभी न अब झुकना तू लाख झुकाये झुकाने वाला
हर नारी है पढ़ने वाली कविता मेरी नारीशाला

© Gayatri Dwivedi