...

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कवच
मैं वीर हूं शाकाल हूं मैं वर्छियों का धार हूं।
जलती हुई हर ज्वाल का धधका हुआ अंगार हूं।
मैं वीर हूं-----------------------------------।
मेरी तरफ जो भी बढ़े, मैं चीर दूं उस वायु को।
सहमा हुआ शिशका हुआ हर शख्स का मैं यार हूं।
मैं वीर हूं----------------------------------।
मेरी कलम का खेल देख, हर रंग का तूं मेल देख।
मेरी कलम मेरी कवच,ना लिख सकूं गुनहगार हूं।
मैं वीर हूं----------------------------------।
मैं वीर हूं शाकाल हूं मैं वर्छियों की धार हूं मैं वीर हूं।
स्व रचित( अभिमन्यु)