...

10 views

कितनी रातें

कितनी रातें काटनी है तुम बिन तुम्ही बताओ न।
ज़ख्म ले सीने में कैसे मुस्कुराएं तुम्ही बताओ न।

देखो न कि आज तन्हा अकेला हूँ हज़ारो में ऐसे।
दिल है जो ग़म-ए- दरिया तो क्या गुनगुनाऊँ मैं।

तुम्हारी चूड़ियों की खनक से लबों पे मुस्कान होती थी।
अब तो पत्तो की सरसराहट भी चुभने लगी है।

कितनी रातें काटनी है तुम बिन तुम्ही बताओ न।
ज़ख्म ले सीने में कैसे मुस्कुराएं तुम्ही बताओ न।-VAIBHAV RASHMI VERMA
© merelafzonse