...

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मजबूरी

झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
एक कपड़े न पाना लाचारी है,
तुम जानो क्या क्या जरूरी...